Monika garg

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लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-12)# कहानीकार प्रतियोगिता के लिए

गतांक से आगे:-


राज की गाड़ी हवा से बातें कर रही थी ।वह यह सोचे जा रहा था कि आखिर अंकल को ऐसा क्या मिला है जो अंकल ने मुझे यूं इस तरह आने को बोला।

कुछ ही क्षणों बाद राज की गाड़ी लाल हवेली के मुख्य दरवाजे के पास खड़ी थी।उसने देखा अंकल की गाड़ी भी यही खड़ी है ।वह गाड़ी का दरवाजा खोलकर तुरंत हवेली की ओर लपका।अंदर जाकर उसने आवाज दी,


"अंकल …….. अंकल आप कहां हो ?"


"मैं यहां ऊपर हूं उसी कमरे में ।"भूषण प्रसाद जी की आवाज कुछ दबी दबी सी आ रही थी।"

राज तुरंत सीढ़ियां चढ़ कर उसी कमरे में पहुंचा जहां पर उस दिन वो घुंघरू की आवाज सुनकर आया था।

उसने कमरे में जाकर देखा भूषण प्रसाद जी एक आदमकद शीशे के आगे बैठे थे । वहां पर श्रृंगार का कुछ सामान जैसे कंघा,काजल ,सिंदूर, बिंदियां आदि रखे हुए थे ।एक कटोरी में शायद कोई लेप सा था जो थोड़ा थोडा गीला था ।जिसे देखकर ऐसा लगता था जैसे ये अभी कुछ घंटों पहले ही इस्तेमाल हुआ है।और…..और उसी के पास कानों में पहनने वाली आधुनिक जमाने की बालियां रखी थी । क्यों कि ऐसी ही बालियां नयना के पास भी थी।उन सब को देखकर मिस्टर प्रसाद का माथा ठनका। वो उस कमरे का मुआयना कर रहे थे कि तभी उनका हाथ उस आदमकद शीशे के किनारे पर लगा तो खटाक से कोई बटन दब गया ।उसके दबते ही वह शीशा एक कबर्ड की तरह साइड में सरक गया और उस दीवार में एक दरवाजा दिखाई देने लगा। मिस्टर प्रसाद का हैरानी का ठिकाना नहीं रहा उन्होंने उस दरवाजे के अंदर झांका तो देखा उसमें एक सुरंग है जो आगे जाकर दांये और बायें दो भागों में बंट जाती है। मिस्टर प्रसाद वापस लौट आये और उन्होंने शीशे में ढूंढ कर वो बटन खोजा और उसे पुनः बंद करके राज को फोन लगाया।


सारी बातें जानकर राज बोला ,"अंकल फिर देर किस बात की है चलो अभी इस सुरंग में चलते हैं ।"


"नहीं राज  ऐसे नहीं हम अपनी पूरी टीम के साथ अंदर जाएंगे ।ऐसे अकेले जाना खतरे से खाली नहीं होगा।"


"ठीक है अंकल  वैसे मैं शास्त्री जी से भी बात कर आया हूं वो शाम को अपने घर आ रहे हैं ।एक बार देखें तो उन ताड़पत्र में क्या कहानी छिपी हुई है।"

"तुम ठीक कह रहे हो। चलों घर चलते हैं ।पर मुझे ये बालियों का राज नहीं समझ आया क्योंकि कल जब हम यहां आये थे तो हमने कोई ऐसी चीज नहीं देखी थी और आज ये बालियां उस श्रृंगार के समान के साथ ऐसे रखी हुई थी जैसे कोई अभी अभी थोड़े समय पहले यहां तैयार होकर निकला हो।"


"हां अंकल मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता है।एक बात और आप को नहीं लगता ये कमरा हवेली की ओर जगहों से ज्यादा साफ सुथरा है ।ऐसे लगता है जैसे इसकी झाड़ पोंछ होती रहती है।"


"इस से तुम्हारा क्या मतलब है?"


"यही कि यहां पर समय समय पर कोई आता रहता है और वह कल रात भी यहां पर था।"


मिस्टर प्रसाद एक बार फिर हैरान रह गये राज के जासूसी दिमाग को देखकर। वो ये भी देखकर हैरान थे कि आज राज को उस दिन वाला दौरा नहीं पड़ा हालांकि वो उसी कमरे में खड़ा था ।

शाम के चार बज चुके थे दोनों ने घड़ी देखी और घर चलने की तैयारी की क्यों कि शास्त्री जी भी आने वाले थे।

दोनों हवेली से बाहर आये और अपनी अपनी गाड़ी लेकर घर की ओर चल पड़े । मिस्टर प्रसाद की गाड़ी आगे आगे जा रही थी और राज पीछे गाड़ी चलाते हुए जा रहा था जब घर पहुंचे तो शास्त्री जी उनका लान में बैठे इंतजार कर रहे थे वैसे नयना चाय वाय सब दे गयी थी नयना भी शास्त्री जी को जानती थी क्योंकि दो साल वो भी उन से पढ़ी हुई थी।

मिस्टर प्रसाद ने बड़ी ही गर्मजोशी से उनसे हाथ मिलाया और सारा हालचाल पूछा । बातों का सिलसिला चल उठा।अपने विषय में सब कुछ बता कर सहसा शास्त्री जी बोले,


"राज बेटा बता रहा था आप को कोई काम है मुझ से?"


"जी मास्टर जी, आप आइए मेरे साथ।"

यह कहकर भूषण प्रसाद उन्हें अपने स्टडी रूम में ले गये। पीछे पीछे राज भी चला गया। उन्होंने वो संदूकची अलमारी में से निकाली और शास्त्री जी के आगे मेज पर रख दी।उस संदूकची को देखकर शास्त्री जी को एक झुरझुरी सी आई क्योंकि की उन्हें उपरी हवाओं का ज्ञान था मतलब कोई आत्मा का सूक्ष्म अंश अगर आसपास होता तो उनके शरीर को पता चल जाता था।वो अचानक से बोले,

"ये आप कहां से ले कर आये हैं?"

"ये संदूकची हमें लाल हवेली में एक कमरा है उसमें एक अलमारी में एक बक्सा रखा था उसमें मिली है। मैं आप को विस्तार से बताता हूं ।

      आप को तो पता ही है मैं पुरातत्व विभाग अधिकारी हूं ।आजकल मुझे गांव से बाहर जो महल के खंडहर है उनकी खुदाई का काम मिला हुआ है।अभी थोड़े दिन पहले जब हम खुदाई कर रहे थे तो हमें जमीन में एक जगह थोड़ी धंसी हुई सी मिली जब हमने उसके आसपास की मिट्टी हटाई तो हमें वहां सीढ़ियों का रास्ता दिखाई दिया हमने वहां अच्छे से खोदा  तो हमें वहां एक तहखाना मिला ।जब मैं तहखाने में गया तो मैंने वहां पर बहुत सी मूर्तियां रखी देखी पर सभी मूर्तियां अलग-अलग मुद्राओं में होने के बाद भी एक ही स्त्री की थी।वहीं पर मुझे एक तस्वीर मिली जिसमें बैठे लड़के की शक्ल हूबहू अपने राज से मिलती थीऔर जो साथ में लड़की बैठी थी वो लड़की अपने राज को बार बार दिखाई देती है और वहां रखी मूर्तियां भी उसी लड़की की थी।और वो लड़की राज को भी बहुत बार लाल हवेली के आस-पास ही दिखाई देती है।

    हम जानना चाहते हैं इस संदूकची में रखें ताड़पत्र में ऐसा कया लिखा है क्योंकि ये संस्कृत में है जो हमे नही आती।उस तस्वीर में भी पीछे लाल हवेली ही का दृश्य था जरूर इस किताब और महल के खंडहर और उस लड़की में कोई सम्बंध है।"


शास्त्री जी ने आंखें बंद की और थोड़ी देर बाद खोला तो बोले,


"बिल्कुल संबंध है इन सब चीजों का आपस में।"


कहानी अभी जारी है…………


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1 Comments

KALPANA SINHA

12-Aug-2023 07:16 AM

Nice part

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